सहीफ़ा कामेलह - ईमाम ज़ैन अल'आबेदीन (अ:स) की दुआओँ का सहीफ़ा﴿

दुआ 8 - मुसीबतों से बचाव और बुरे एख़लाक़ व आमाल से हिफ़ाज़त के सिलसिले में  

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शुरू करता हूँ अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है 

बिस्मिल्लाह अर'रहमान अर'रहीम 

بِسْمِ اللهِ الرَحْمنِ الرَحیمْ

ऐ अल्लाह! मैं तुझसे पनाह मांगता हुं हिर्स की तुग़यानी, ग़ज़ब की शिद्दत, हसद की चीरादस्ती, बेसब्री, क़नाअत की कमी, कज एख़लाक़ी, ख़्वाहिशे नफ़्स की फ़रावानी, असबीयत के ग़लबे, हवा व हवस की पैरवी, हिदायत की खि़लाफ़वर्ज़ी, ख़्वाबे ग़फ़लत (की मदहोशी) और तकल्लुफ़ पसन्दी से नीज़ बातिल को हक़ पर तरजीह देने, गुनाहों पर इसरार करने, मासियत को हक़ीर और इताअत को अज़ीम समझने, दौलतमन्दों के से तफ़ाख़ुर, मोहताजों की तहक़ीर और अपने ज़ेर दस्तों की बुरी निगेहदाश्त और जो हमसे भलाई करे उसकी नाशुक्री से और इससे के हम किसी ज़ालिम की मदद करें और मुसीबतज़दा को नज़रअन्दाज़ करें या उस चीज़ का क़स्द करें जिसका हमें हक़ नहीं या दीन में बे जाने बूझे दख़ल दें और हम तुझसे पनाह मांगते हैं इस बात से के किसी को फ़रेब देने का क़स्द करें या अपने आमाल पर नाज़ाँ हों और अपनी उम्मीदों का दामन फैलाएं और हम तुझसे पनाह मांगते हैं, बदबातनी और छोटे गुनाहों को हक़ीर तसव्वुर करने और इस बात से के शैतान हम पर ग़लबा हासिल कर ले जाए या ज़माना हमको मुसीबत में डाले या फ़रमानरवा अपने मज़ालिम का निशाना बनाए और हम तुझसे पनाह मांगते हैं फ़िज़ूलख़र्ची में पड़ने और हस्बे ज़रूरत रिज़्क़ के न मिलने से और हम तुझसे पनाह मांगते हैं दुश्मनों की सेमातत, हमचश्मों की एहतियाज, सख़्ती में ज़िन्दगी बसर करने और तोशए आख़ेरत के बग़ैर मर जाने से और तुझसे पनाह मांगते हैं बड़े तास्सुफ़, बड़ी मुसीबत, बदतरीन बदबख़्ती, बुरे अन्जाम, सवाब से महरूमी और अज़ाब के वारिद होने से। 

ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा, और अपनी  हरमत के सदक़े में मुझे और तमाम मोमेनीन व मोमेनात को उन सब बुराइयों से पनाह दे। ऐ तमाम रहम करने वालों में सबसे ज़्यादा रहम करने वाले।

 

أَللَّهُمَّ إنِّي أعُوذُ بِكَ مِنْ هَيَجَـانِ الْحِرْصِ ، وَسَوْرَةِ الغَضَبِ وَغَلَبَةِ الْحَسَدِ وضَعْفِ الصَّبْرِوَقِلَّةِ الْقَنَاعَةِ وَشَكَاسَةِ الْخُلُقِ ،وَإلْحَاحِ الشَّهْوَةِ ، وَمَلَكَةِ الْحَمِيَّةِ  وَمُتَابَعَةِ الْهَوَى ، وَمُخَالَفَةِ الْهُدَى ،وَسِنَةِ الْغَفْلَةِ ، وَتَعَاطِي الْكُلْفَةِ ،وَإيْثَارِ الْبَاطِلِ عَلَى الْحَقِّ وَالإصْرَارِ عَلَى الْمَأثَمِ ،وَاسْتِصْغَـارِ الْمَعْصِيَـةِ ، وَاسْتِكْثَارِ الطَّاعَةِ ،وَمُبَاهَاةِ الْمُكْثِرِينَ ، وَالإزْرآءِ بِالْمُقِلِّينَ ، وَسُوءِ الْوِلاَيَةِ لِمَنْ تَحْتَ أَيْدِينَا وَتَرْكِ الشُّكْرِ لِمَنِ اصْطَنَعَ الْعَارِفَةَ عِنْدَنَا ،أَوْ أَنْ نَعْضُدَ ظَالِماً ، أَوْ نَخْذُلَ مَلْهُوفاً ،أَوْ نَرُومَ مَا لَيْسَ لَنَا بِحَقّ، أَوْ نَقُولَ فِي الْعِلْمِْ بِغَيْرِ عِلْم وَنَعُـوذُ بِـكَ أَنْ نَنْطَوِيَ عَلَى غِشِّ أَحَد ، وَأَنْ نُعْجَبَ بِأَعْمَالِنَا ، وَنَمُدَّ فِي آمَالِنَا ، وَنَعُوذُ بِكَ مِنْ سُوءِ السَّرِيرَةِ ، وَاحْتِقَارِ الصَّغِيرَةِ ، وَأَنْ يَسْتَحْوِذَ عَلَيْنَا الشَّيْطَانُ ، أَوْ يَنْكُبَنَـا الزَّمَانُ ، أَوْ يَتَهَضَّمَنَا السُّلْطَانُ.  وَنَعُوذُ بِكَ مِنْ تَنَاوُلِ الإسْرَافِ ، وَمِنْ فِقْدَانِ الْكَفَـافِ وَنَعُوذُ بِـكَ مِنْ شَمَاتَةِ الأَعْدَاءِ وَمِنَ الْفَقْرِ إلَى الاَكْفَاءِ وَمِنْ مَعِيشَة فِي شِدَّة وَمَيْتَة عَلَى غَيْـرِ عُدَّة. وَنَعُـوذُ بِكَ مِنَ الْحَسْرَةِ الْعُظْمى ، وَالْمُصِيبَةِ الْكُبْرَى ، وَأَشْقَى الشَّقَآءِ وَسُوءِ المآبِ ، وَحِرْمَانِ الثَّوَابِ ، وَحُلُولِ الْعِقَابِ. اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّد وَآلِهِ ، وَأَعِذْنِي مِنْ كُلِّ ذَلِكَ بِرَحْمَتِكَ  وَجَمِيـعَ الْمُؤْمِنِينَ وَالْمُؤْمِنَاتِ يَا أَرْحَمَ الرَّاحِمِينَ. 

 

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