इस रन्ज व अन्दोह के बरतरफ़ करने वाले और ग़म व अलम के दूर
करने वाले,
ऐ दुनिया व आख़ेरत में रहम करने वाले और दोनों जहानों में
मेहरबानी फ़रमाने वाले तू मोहम्मद (स0)
और उनकी आल (अ0)
पर रहमत नाज़िल फ़रमा और मेरी बेचैनी को दूर और मेरे ग़म
को बरतरफ़ कर दे ऐ अकेले,
ऐ यकता! ऐ बेनियाज़! ऐ वह जिसकी कोई औलाद नहीं और न वह
किसी की औलाद है और न उसका कोई हमसर है मेरी हिफ़ाज़त
फ़रमा और मुझे (गुनाहों से) पाक रख और मेरे रन्ज व अलम को
दूर कर दे (इस मुक़ाम पर आयतलकुर्सी,
क़ुल आउज़ो बेरब्बिन्नास,
क़ुल आउज़ो बेरब्बिल फ़लक़ और क़ुल हो वल्लाहो अहद पढ़ो और
यह कहो) बारे इलाहा! मैं तुझसे सवाल करता हूं,
उस शख़्स का सवाल जिसकी एहतियाज शदीद क़ूवत व तवानाई ज़ईफ़
और गुनाह फ़रावां हों,
उस शख़्स का सा सवाल जिसे अपनी हाजत के मौक़े पर कोई
फ़रयादरस,
जिसे अपनी कमज़ोरी के आलम में कोई पुश्तपनाह और जिसे तेरे
अलावा ऐ जलालत व बुज़ुर्गी वाले। कोई गुनाहों का बख़्शने
वाला दस्तयाब न हो। बारे इलाहा! मैं तुझसे इस अमल (की
तौफ़ीक़) का सवाल करता हूं के जो उस पर अमलपैरा हो तू उसे
दोस्त रखे और ऐसे यक़ीन का के जो उसके ज़रिये तेरे फ़रमाने
क़ज़ा पर पूरी तरह मुतयक़्क़न हो तो उसके बाएस तू फ़ाएदा व
मनफ़अत पहुंचाए। ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0)
और उनकी आल (अ0)
पर रहमत नाज़िल फ़रमा और मुझे हक़ व सेदाक़त पर मौत दे और
दुनिया से मेरी हाजत व ज़रूरत का सिलसिला ख़त्म कर दे और
अपनी मुलाक़ात के जज़्बए इश्तियाक़ की बिना पर अपने हां की
चीज़ों की तरफ़ मेरी ख़्वाहिश व रग़बत क़रार दे और मुझे
अपनी ज़ात पर सही एतमाद व तवक्कल की तौफ़ीक़ अता फ़रमा।
मैं तुझसे साबेक़ा नौश्ते तक़दीर की भलाई का तालिब हूं और
साबेक़ा सरनौश्ते तक़दीर की बुराई से पनाह मांगता हूं। मैं
तेरे इबादतगुज़ार बन्दों के ख़ौफ़,
अज्ज़ व फ़रवतनी करने वालों की इबादत,
तवक्कल करने वालों के यक़ीन और ईमानदारों के एतमाद व
तवक्कल का तुझसे ख़्वास्तगार हूं। बारे इलाहा! तलब व सवाल
में मेरी ख़्वाहिश व रग़बत को ऐसा ही क़रार दे जैसी तलब व
सवाल मैं तेरे दोस्तों की तमन्ना व ख़्वाहिश होती है। और
मेरे ख़ौफ़ को भी अपनी दोस्तों के ख़ौफ़ के मानिन्द ंक़रार
दे और मुझे अपनी रेज़ा व ख़ुशनूदी में इस तरह बरसरे ंअमल
रख के मैं तेरे मख़लूक़ात में से किसी एक के ख़ौफ़ से तेरे
दीन की किसी बात को तर्क न करूं। ऐ अल्लाह! यह मेरी हाजत
है इसमें मेरी तवज्जो व रग़बत को अज़ीम कर दे। मेरे उज़्र
को आश्कारा कर और उसके बारे में मुझे दलील व हुज्जत की
तालीम कर और इसमें मेरे जिस्म को सेहत व सलामती बख़्श। ऐ
अल्लाह! जिसे भी तेरे सिवा दूसरे पर भरोसा या उम्मीद हो तो
मैं इस आलम में सुबह करता हूं के तमाम उमूर में तू ही
एतमाद व उम्मीद का मरकज़ होता है। लेहाज़ा जो उमूर बलेहाज़
अन्जाम बेहतर हों वह मेरे लिये नाफ़िज़ फ़रमा और मुझे अपनी
रहमत के वसीले से गुमराह करने वाले फ़ित्नों से छुटकारा
दे। ऐ तमाम रहम करने वालों में सबसे ज़्यादा रहम करने
वाले। और अल्लाह रहमत नाज़िल करे हमारे सययद व सरदार
फ़र्सतादहे ख़ुदा मोहम्मद (स0)
मुस्तफ़ा पर और उनकी पाक व पाकीज़ा आल (अ0)
पर।
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يَا فَارِجَ الْهَمِّ وَكَاشِفَ الغَمِّ، يَا رَحْمنَ الدُّنْيَا
وَالآخِرَةِ وَرَحِيمَهُمَا، صَلِّ عَلَى مُحَمَّد وَآلِ مُحَمَّد،
وَافْرُجْ هَمِّيَ، وَاكْشِفْ غَمِّيَ، يَا وَاحِدُ يَا أَحَدُ، يَا
صَمَدُ، يَامَنْ لَمْ يَلِدْ وَلَمْ يُولَدْ، وَلَمْ يَكُنْ لَهُ كُفُواً
أَحَدٌ، اعْصِمْنِي وَطَهِّرْنِي، وَاْذهِبْ بِبَلِيَّتِي. [وَاقْرَأْ
آيَةَ الْكُرسِيّ وَالْمُعَوِّذَتَيْنِ وَقُلْ هُوَ اللهُ أَحَدٌ وَقُلْ:]
أَللَّهُمَّ إنِّيْ أَسْأَلُكَ سُؤَالَ مَنِ اشْتَدَّتْ فَاقَتُهُ،
وَضَعُفَتْ قُوَّتُهُ، وَكَثُرَتْ ذُنُوبُهُ، سُؤَالَ مَنْ لاَ يَجِدُ
لِفَاقَتِهِ مُغِيْثاً، وَلاَ لِضَعْفِهِ مُقَوِّياً، وَلاَ لِذَنْبِهِ
غَافِراً غَيْرَكَ، يَا ذَا الْجَلاَلِ وَالإكْرَامِ. أَسْأَلُكَ عَمَلاً
تُحِبُّ بِهِ مَنْ عَمِلَ بِهِ، وَيَقِيناً تَنْفَعُ بِهِ مَنِ اسْتَيْقَنَ
بِهِ حَقَّ الْيَقِينِ فِيْ نَفَاذِ أَمْرِكَ. أللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى
مُحَمَّد وَآلِ مُحَمَّد، وَاقْبِضَ عَلَى الصِّدْقِ نَفْسِي، وَاقْطَعْ
مِنَ الدُّنْيَا حَاجَتِي، وَاجْعَلْ فِيمَا عِنْدَكَ رَغْبَتِي، شَوْقاً
إلَى لِقَائِكَ، وَهَبْ لِي صِدْقَ التَّوَكُّلِ عَلَيْكَ . َسْأَلُكَ مِنْ
خَيْرِ كِتَاب قَدْ خَلاَ وَأَعُوذُ بِكَ مِنْ شَرِّ كِتَاب قَدْ خَلاَ
أَسْأَلُكَ خَوْفَ الْعَابِدِينَ لَكَ، وَعِبَادَةَ الْخَاشِعِينَ لَكَ،
وَيَقِيْنَ الْمُتَوَكِّلِينَ عَلَيْكَ، وَتَوَكُّلَ الْمُؤْمِنِينَ
عَلَيْكَ. أَللَّهُمَّ اجْعَلْ رَغْبَتِي فِي مَسْأَلَتِي مِثْلَ رَغْبَةِ
أَوْلِيَآئِكَ فِي مَسَائِلِهِمْ، وَرَهْبَتِيْ مِثْلَ رَهْبَةِ
أَوْلِيَآئِكَ، وَاسْتَعْمِلْنِي فِي مَرْضَاتِكَ، عَمَلاً لاَ أَتْرُكُ
مَعَهُ شَيْئاً مِنْ دِيْنِكَ مَخَافَةَ أَحْد مِنْ خَلْقِكَ. أللَّهُمَّ
هَذِهِ حَاجَتِي، فَأَعْظِمْ فِيهَا رَغْبَتِي، وَأَظْهِرْ فِيهَا عُذْرِي،
وَلَقِّنِي فِيهَا حُجَّتِي وَعَافِ فِيْهَا جَسَدِيْ. أللَّهُمَّ مَنْ
أَصْبَحَ لَهُ ثِقَةٌ أَوْ رَجَآءٌ غَيْرُكَ، فَقَدْ أَصْبَحْتُ وَأَنْتَ
ثِقَتِي وَرَجَآئِي فِي الأُمُورِ كُلِّهَا، فَاقْضِ لِيْ بِخَيْرِهَا
عَاقِبَةً، وَنَجِّنِيْ مِنْ مُضِلاَّتِ الْفِتَنِ، بِرَحْمَتِكَ يَا
أَرْحَمَ الرَّاحِمِينَ. وَصَلَّى اللهُ عَلَى سَيِّدِنَا مُحَمَّد رُسُولِ
اللهِ المُصْطَفَى، وَعَلَى آلِهِ الطَّاهِرِينَ
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