सहीफ़ा कामेलह - ईमाम ज़ैन अल'आबेदीन (अ:स) की दुआओँ का सहीफ़ा﴿

दुआ 3 - हामिलाने अर्श व दुसरे मुक़र्रिब फ़रिश्तों पर दरूद व सलाम 

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शुरू करता हूँ अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है 

बिस्मिल्लाह अर'रहमान अर'रहीम 

بِسْمِ اللهِ الرَحْمنِ الرَحیمْ

ऐ अल्लाह! तेरे अर्श के उठाने वाले फ़रिश्ते जो तेरी तस्बीह से उकताते नहीं हैं और तेरी पाकीज़गी के बयान से थकते नहीं और न तेरी इबादत से ख़स्ता व मलूल होते हैं और न तेरे तामीले अम्र में सई व कोशिश के बजाए कोताही बरतते हैं और न तुझसे लौ लगाने से ग़ाफ़िल होते हैं और इसराफ़ील (अ0) साहेबे सूर जो नज़र उठाए हुए तेरी इजाज़त और निफ़ाज़े हुक्म के मुन्तज़िर हैं ताके सूर फूंक कर क़ब्रों में पड़े हुए मुर्दों को होशियार करें और मीकाईल (अ0) जो तेरे यहाँ मरतबे वाले और तेरी इताअत की वजह से बलन्द मन्ज़िलत हैं और जिबरील (अ0) जो तेरी वही के अमानतदार और अहले आसमान जिनके मुतीअ व फ़रमाँबरदार हैं और तेरी बारगाह में मक़ामे बलन्द और तक़र्रूबे ख़ास रखते हैं और वह रूह जो फ़रिश्तगाने हिजाब पर मोक्किल है और वह रूह जिसकी खि़लक़त तेरे आलमे अम्र से है इन सब पर अपनी रहमत नाज़िल फ़रमा और इसी तरह उन फ़रिश्तों पर जो उनसे कम दरजा और आसमानों में साकिन और तेरे पैग़ामों के अमीन हैं और उन फ़रिश्तों पर जिनमें किसी सई व कोशिष से बद्दिली और किसी मशक़्क़त से ख़स्तगी व दरमान्दगी पैदा नहीं होती और न तेरी तस्बीह से नफ़सानी ख़्वाहिशें उन्हें रोकती हैं और न उनमें ग़फ़लत की रू से ऐसी भूल चूक पैदा होती है जो उन्हें तेरी ताज़ीम से बाज़ रखे। वह आँखें झुकाए हुए हैं के (तेरे नूरे अज़मत की तरफ़ निगाह उठाने का भी इरादा नहीं करते और ठोड़ियों के बल गिरे हुए हैं और तेरे यहाँ के दरजात की तरफ़ उनका इश्तियाक़ बेहद व बेनिहायत है और तेरी नेमतों की याद में खोए हुए हैं और तेरी अज़मत व जलाले किबरियाई के सामने सराफ़गन्दा हैं, और उन फ़रिश्तों पर जो जहन्नुम को गुनहगारों पर शोलावर देखते हैं तो कहते हैं:-

पाक है तेरी ज़ात! हमने तेरी इबादत जैसा हक़ था वैसी नहीं की। (ऐ अल्लाह!) तू उन पर और फ़रिश्तगाने रहमत पर और उन पर जिन्हें तेरी बारगाह में तक़र्रूब हासिल है और तेरे पैग़म्बरों (अ0) की तरफ़ छिपी हुई ख़बरें ले जाने वाले और तेरी वही के अमानतदार हैं और उन क़िस्म-क़िस्म के फ़रिश्तों पर जिन्हें तूने अपने लिये मख़सूस कर लिया है और जिन्हें तस्बीह व तक़दीस के ज़रिये खाने पीने से बेनियाज़ कर दिया है और जिन्हें आसमानी तबक़ात के अन्दरूनी हिस्सों में बसाया है और उन फ़रिश्तों पर जो आसमानों के किनारों में तौक़ुफ़ करेंगे जबके तेरा हुक्म वादे के पूरा करने के सिलसिले में सादिर होगा। और बारिश के ख़ज़ीनेदारों और बादलों के हंकाने वालों पर और उस पर जिसके झिड़कने से राद की कड़क सुनाई देती है और जब इस डांट डपट पर गरजने वाले बादल रवाँ होते हैं तो बिजली के कून्दे तड़पने लगते हैं और उन फ़रिश्तों पर जो बर्फ़ और ओलों के साथ-साथ उतरते हैं और हवा के ज़ख़ीरों की देखभाल करते हैं और उन फ़रिश्तों पर जो पहाड़ों पर मोवक्किल हैं ताके वह अपनी जगह से हटने न पाएं और उन फ़रिश्तों पर जिन्हें तूने पानी के वज़न और मूसलाधार और तलातुम अफ़ज़ा बारिशों की मिक़दार पर मुतलेअ किया है और उन फ़रिश्तों पर जो नागवार इब्तिलाओं और ख़ुश आइन्द आसाइशों को लेकर अहले ज़मीन की जानिब तेरे फ़र्सतादा हैं और उन पर जो आमाल का अहाता करने वाले गरामी मन्ज़िलत और नेकोकार हैं और उन पर जो निगेहबानी करने वाले करामन कातेबीन हैं और मलके अमलूत और उसके आवान व अन्सार और मुनकिर नकीर और अहले क़ुबूर की आज़माइश करने वाले रूमान पर और बैतुलउमूर का तवाफ़ करने वालों पर और मालिक और जहन्नम के दरबानों पर और रिज़वान और जन्नत के दूसरे पासबानों पर और उन फ़रिश्तों पर जो ख़ुदा के हुक्म की नाफ़रमानी नहीं करते और जो हुक्म उन्हें दिया जाता है उसे बजा लाते हैं और उन फ़रिश्तों पर जो (आख़ेरत में) सलाम अलैकुम के बाद कहेंगे के दुनिया में तुमने सब्र किया (यह उसी का बदला है) देखो तो आख़ेरत का घर कैसा अच्छा है और दोज़ख़ के उन पासबानों पर के जब उनसे कहा जाएगा के उसे गिरफ़्तार करके तौक़ व ज़न्जीर पहना दो फिर उसे जहन्नुम में झोंक दो तो वह उसकी तरफ़ तेज़ी से बढ़ेंगे और उसे ज़रा मोहलत न देंगे। और हर उस फ़रिश्ते पर जिसका नाम हमने नहीं लिया और न हमें मालूम है के उसका तेरे हाँ क्या मरतबा है और यह के तूने किस काम पर उसे मुअय्यन किया है और हवा, ज़मीन और पानी में रहने वाले फ़रिश्तों पर और उन पर जो मख़लूक़ात पर मुअय्यन हैं उन सब पर रहमत नाज़िल कर उस दिन के जब हर शख़्स इस तरह आएगा के उसके साथ एक हंकाने वाला होगा और एक गवाही देने वाला और उन सब पर ऐसी रहमत नाज़िल फ़रमा जो उनके लिये इज़्ज़त बालाए इज़्ज़त और तहारत बालाए तहारत का बाएस हो। ऐ अल्लाह! जब तू अपने फ़रिश्तों और रसूलों पर रहमत नाज़िल करे और हमारे सलवात व सलाम को उन तक पहुंचाए तो हम पर भी अपनी रहमत नाज़िल करना इसलिये के तूने हमें उनके ज़िक्रे ख़ैर की तौफ़ीक़ बख़्शी। बेशक तू बख़्शने वाला और करीम है।

 

اللَّهُمَّ وَحَمَلَةُ عَرْشِكَ الَّذِينَ لا يَفْتُرُونَ مِنْ تَسْبِيحِكَ،  وَلا يَسْـأَمُـونَ مِنْ تَقْـدِيْسِكَ، وَلا يَسْتَحسِرُونَ مِنْ عِبَادَتِكَ، وَلاَ يُؤْثِرُونَ التَّقْصِيرَ عَلَى الْجِدِّ فِي أَمْرِكَ،  وَلا يَغْفُلُونَ عَنِ الْوَلَهِ إلَيْكَ. وَإسْرافِيْلُ صَاحِبُ  الصُّوْرِ، الشَّاخِصُ الَّذِي يَنْتَظِرُ مِنْكَ الاذْنَ وَحُلُولَ  الامْرِ، فَيُنَبِّهُ بِالنَّفْخَةِ صَرْعى رَهَائِنِ الْقُبُورِ.  وَمِيكَآئِيلُ ذُو الْجَاهِ عِنْدَكَ، وَالْمَكَانِ الرَّفِيعِ مِنْ طَاعَتِكَ.  وَجِبْريلُ الامِينُ عَلَى وَحْيِكَ، الْمُطَاعُ فِي أَهْلِ  سَمَاوَاتِكَ، الْمَكِينُ لَدَيْكَ، الْمُقَرَّبُ عِنْدَكَ،  وَالرُّوحُ الَّذِي هُوَ عَلَى مَلائِكَةِ الْحُجُبِ، وَالرُّوحُ الَّذِي  هُوَ مِنْ أَمْرِكَ. أَللَّهُمَّ فَصَلِّ عليهم وَعَلَى الْمَلاَئِكَـةِ الَّـذِينَ مِنْ دُونِهِمْ مِنْ سُكَّـانِ سَمَاوَاتِكَ  وَأَهْلِ الامَانَةِ عَلَى رِسَالاَتِكَ، وَالَّذِينَ لا تَدْخُلُهُمْ سَأْمَةٌ مِنْ دؤُوب ، وَلاَ إعْيَاءٌ مِنْ لُغُوب وَلاَ فُتُورٌ، وَلاَ تَشْغَلُهُمْ عَنْ تَسْبِيحِكَ الشَّهَوَاتُ، وَلا يَقْطَعُهُمْ عَنْ تَعْظِيمِكَ سَهْوُ الْغَفَـلاَتِ، الْخُشَّعُ الابْصارِ فلا يَرُومُونَ النَّظَرَ إلَيْكَ ، النَّواكِسُ الاذْقانِ الَّذِينَ قَدْ طَالَتْ رَغْبَتُهُمْ فِيمَا لَدَيْكَ الْمُسْتَهْتِرُونَ بِذِكْرِ آلائِكَ  وَالْمُتَوَاضِعُونَ دُونَ عَظَمَتِكَ وَجَلاَلِ كِبْرِيآئِكَ وَالَّذِينَ يَقُولُونَ إذَا نَظَرُوا إلَى جَهَنَّمَ تَزْفِرُ عَلَى أَهْلِ مَعْصِيَتِكَ : سُبْحَانَكَ مَا عَبَدْنَاكَ حَقَّ عِبَـادَتِكَ . فَصَـلِّ عَلَيْهِمْ وَعَلَى الرَّوْحَانِيِّينَ مِنْ مَلائِكَتِكَ، وَ أهْلِ الزُّلْفَةِ عِنْدَكَ، وَحُمَّالِ الْغَيْبِ إلى رُسُلِكَ، وَالْمُؤْتَمَنِينَ على وَحْيِكَ وَقَبائِلِ الْمَلائِكَةِ الَّذِينَ اخْتَصَصْتَهُمْ لِنَفْسِكَ، وَأَغْنَيْتَهُمْ عَنِ الطَّعَامِ والشَّرَابِ بِتَقْدِيْسِكَ، وَأسْكَنْتَهُمْ بُطُونَ أطْبَـاقِ سَمَاوَاتِكَ، وَالّذينَ عَلَى أرْجَآئِهَا إذَا نَزَلَ الامْرُ بِتَمَامِ وَعْدِكَ، وَخزّانِ الْمَطَرِ وَزَوَاجِرِ السَّحَابِ، وَالّذِي بِصَوْتِ زَجْرِهِ يُسْمَعُ زَجَلُ ألرُّعُوْدِ، وَإذَا سَبَحَتْ بِهِ حَفِيفَةُ السّحَـابِ الْتَمَعَتْ صَوَاعِقُ الْبُرُوقِ.  وَمُشَيِّعِيْ الْثَلْجِ وَالْبَرَدِ. وَالْهَابِطِينَ مَعَ قَطْرِ الْمَطَر إَذَا نَزَلَ، وَالْقُوَّامِ عَلَى خَزَائِنِ الرّيَاحِ، وَ المُوَكَّلِينَ بِالجِبَالِ فَلا تَزُولُ. وَالَّذِينَ عَرَّفْتَهُمْ مَثَاقِيلَ الْمِياهِ، وَكَيْلَ مَا تَحْوِيهِ لَوَاعِجُ الامْطَارِ وَعَوَالِجُهَا،  وَرُسُلِكَ مِنَ الْمَلائِكَةِ إلَى أهْلِ الارْضِ بِمَكْرُوهِ مَا يَنْزِلُ مِنَ الْبَلاءِ، وَمَحْبُوبِ الرَّخَآءِ، والسَّفَرَةِ الْكِرَامِ اَلبَرَرَةِ، وَالْحَفَظَةِ الْكِرَامِ الْكَاتِبِينَ، وَمَلَكِ الْمَوْتِ وَأعْوَانِهِ،  وَمُنْكَر وَنَكِير، وَرُومَانَ فَتَّانِ الْقُبُورِ،  وَالطَّائِفِينَ بِالبَيْتِ الْمَعْمُورِ، وَمَالِك،  وَالْخَزَنَةِ، وَرُضْوَانَ، وَسَدَنَةِ الْجِنَانِ  وَالَّذِيْنَ لاَ يَعْصُوْنَ اللّهَ مَا أمَرَهُمْ وَيَفْعَلُونَ مَا يُؤْمَرُونَ. وَالَّذِينَ يَقُولُونَ: سَلاَمٌ عَلَيْكُمْ بِمَا صَبَرْتُمْ فَنِعْمَ عُقْبَى الـدّارِ.  والزّبانيةُ الذّينَ إذَا قِيْـلَ لَهُمْ: خُذُوهُ فَغُلُّوْهُ ثُمَّ الْجَحِيمَ صَلُّوْهُ ابْتَدَرُوهُ سِرَاعاً وَلَمْ يُنْظِرُوهُ. وَمَنْ أوْهَمْنَا ذِكْرَهُ، وَلَمْ نَعْلَمْ مَكَانَهُ مِنْكَ، وَبأيِّ أمْر وَكَّلْتَهُ. وَسُكّانُ الْهَوَآءِ وَالارْضِ وَالمآءِ، وَمَنْ مِنْهُمْ عَلَى الْخَلْقِ فَصَلِّ عَلَيْهِمْ يَوْمَ تَأْتي كُلُّ نَفْس مَعَهَا سَائِقٌ وَشَهِيدٌ، وَصَلّ عَلَيْهِمْ صَلاَةً تَزِيدُهُمْ كَرَامَةً عَلى كَرَامَتِهِمْ، وَطَهَارَةً عَلَى طَهَارَتِهِمْ اللّهُمَّ وَإذَا صَلَّيْتَ عَلَى مَلاَئِكَتِكَ وَرُسُلِكَ، وَبَلَّغْتَهُمْ صَلاَتَنَا عَلَيْهِمْ، فَصَلِّ عَلَينا بِمَا فَتَحْتَ لَنَا مِنْ حُسْنِ الْقَوْلِ فِيْهِمْ إنَّكَ جَوَاْدٌ كَرِيمٌ .

 

 

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