सहीफ़ा कामेलह - ईमाम ज़ैन अल'आबेदीन (अ:स) की दुआओँ का सहीफ़ा﴿

दुआ 34 - जब ख़ुद या किसी को गुनाहों की रूसवाई में मुब्तिला देखते तो यह दुआ पढ़ते

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शुरू करता हूँ अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है 

बिस्मिल्लाह अर'रहमान अर'रहीम 

بِسْمِ اللهِ الرَحْمنِ الرَحیمْ

ऐ माबूद! तेरे ही लिये तमाम तारीफ़ है इस बात पर के तूने (गुनाहों के) जानने के बाद पर्दापोशी की और (हालात पर) इत्तेलाअ के बाद आफ़ियत व सलामती बख़्शी। यू ंतो हम में से हर एक ही उयूब व नक़ाएस के दरपै हुआ मगर तूने उसे मुशतहिर न किया, और अफ़आले बद का का मुरतकिब हुआ मगर तूने उसको रूसवा न होने दिया और पर्दाए ख़फ़ा में बुराईयों से आलूदा रहा मगर तूने उसकी निशानदेही न की, कितने ही तेरे मनहियात थे जिनके हम मुरतकिब हुए और कितने ही तेरे एहकाम थे जिन पर तूने कारबन्द रहने का हुक्म दिया था। मगर हमने उनसे तजावुज़ किया और कितनी ही बुराइयां थीं जो हमसे सरज़द हुईं। और कितनी ही ख़ताएं थीं जिनका हमने इरतेकाब किया दरआँहालियाके दूसरे देखने वालों के बजाये तू उन पर आगाह था और दूसरे (गुनाहों की तशहीर पर) क़ुदरत रखने वालों से तू ज़्यादा उनके अफ़शा पर क़ादिर था, मगर उसके बावजूद हमारे बारे में तेरी हिफ़ाज़त व निगेहदाश्त उनकी आंखों के सामने पर्दा और उनके कानों के बिलमुक़ाबिल दीवार बन गई तो फिर उस पर्दादारी व ऐबपोशी को हमारे लिये एक नसीहत करने वाला और बदजोई व इरतेकाबे गुनाह से रोकने वाला और (गुनाहों को) मिटाने वाली राहे तौबा और तरीक़ पसन्दीदा पर गामज़नी का वसीला क़रार दे और इस राह पैमाई के लम्हे (हमसे) फ़रेब कर, और हमारे लिये ऐसे असबाब मुहय्या न कर जो तुझसे हमें ग़ाफ़िल कर दें। इसलिये के हम तेरी तरफ़ रूजू होने वाले और गुनाहों से तौबा करने वाले हैं। बारे इलाहा! मोहम्मद (स0) पर जो मख़लूक़ात में तेरे बरगुज़ीदा और उनकी पाकीज़ा इतरत (अ0) पर जो कायनात में तेरी मुन्तख़बकर्दा है रहमत नाज़िल फ़रमा और हमें अपने फ़रमान के मुताबिक़ उनकी बात पर कान धरने वाला और उनके एहकाम की तामील करने वाला क़रार दे।

 

لَكَ الْحَمْدُ عَلَى سِتْرِكَ بَعْدَ عِلْمِكَ ، وَمُعَافَاتِكَ بَعْدَ خُبْرِكَ، فَكُلُّنَا قَدِ اقْتَرَفَ الْعَائِبَةَ فَلَمْ تَشْهَرْهُ ، وَارْتَكَبَ الْفَاحِشَةَ فَلَم تَفْضَحْهُ وَتَسَتَّـرَ بِالْمَسَاوِي فَلَمْ تَدْلُلْ عَلَيْهِ، كَمْ نهْي لَكَ قَدْ أَتَيْنَاهُ، وَأَمْر قَدْ وَقَفْتَنَا عَلَيْهِ فَتَعَدَّيْنَاهُ، وَسَيِّئَة اكْتَسَبْنَاهَا، وَخَطِيئَة ارْتَكَبْنَـاهَا، كُنْتَ الْمُطَّلِعَ عَلَيْهَا دُونَ النَّاظِرِينَ،  وَالْقَادِرَ عَلَى إعْلاَنِهَا فَوْقَ الْقَادِرِينَ، كَانَتْ عَافِيَتُكَ لَنَا حِجَاباً دُونَ أَبْصَارِهِمْ، وَرَدْماً دُونَ أَسْمَاعِهِمْ،  فَاجْعَلْ مَا ستَرْتَ مِنَ الْعَوْرَةِ، وَأَخْفَيْتَ مِنَ الدَّخِيلَةِ وَاعِظاً لَنَا، وَزَاجِراً عَنْ سُوْءِ الْخُلْقِ وَاقْتِرَافِ الخَطِيئَـةِ، وَسَعْياً إلَى التَّوْبَةِ الْمَاحِيَةِ وَالطَّرِيْقِ الْمَحْمُودَةِ، وقَرِّبِ الْوَقْتَ فِيهِ، وَلاَ تَسُمْنَا الْغَفْلَةَ عَنْكَ إنَّا إلَيْكَ رَاغِبُونَ ، وَمِنَ الذُّنُوبِ تَائِبُونَ.  وَصَلِّ عَلَى   خِيَرَتِكَ اللَّهُمَّ مِنْ خَلْقِكَ مُحَمَّد وَعِتْرَتِهِ الصِّفْـوَةِ مِنْ بَرِيَّتِـكَ الطَّاهِرِينَ، وَاجْعَلْنَا لَهُمْ سَامِعِينَ وَمُطِيعِينَ كَمَا أَمَرْتَ .

 

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