इमाम हुसैन (अ:स) अपने नाना रसूल अल्लाह (स:अ:व:व) से उम्मत द्वारा किये गए ज़ुल्म को ब्यान करते हुए कहते हैं : नाना आपके बाद आपकी उम्मत ने माँ फातिमा (स:अ) पर इतना ज़ुल्म ढाया की मेरा भाई उनके कोख में ही मर गया, मेरी माँ और आपकी बेटी पर जलता हुआ दरवाज़ा गिराया गया और उन्हें मार दिया गया! नाना आपकी उम्मत ने बाबा अली (अ:स) को मस्जिद में नमाज़ के सजदे में क़त्ल किया! मेरे भाई हसन (अ:स) को ज़हर देकर मार दिया गया नाना! उसके जनाज़े पर तीरों की बारिश की गयी, फिर भी मैं खामोश रहा! ऐ नाना, मैंने अल्लाह के दीन को आप से किये गए वादे के अनुसार कर्बला के मैदान में अपने तमाम बच्चों, साथियों और अंसारों की क़ुर्बानी देकर बचा लिया! नाना, मेरे 6 महीने के असग़र को तीन दिन की प्यास के बाद तीन फल का तीर मिला ! मेरा बेटा अकबर, जो आप का हमशक्ल था, उसके सीने में ऐसा नैज़ा मारा गया की उसका फल उसके कलेजे में ही टूट गया ! मेरी बच्ची सकीना को तमाचे मार-मार कर इस तरह से उसके कानो से बालियाँ खींची गयी के उसके कान के लौ कट गए ! ऐ नाना,बाबा की दुआओं की तमन्ना मेरा भैय्या अब्बास, जो हमारे कबीले के चमकते चाँद की तरह था, उसको इतने टुकड़ों में काटा गया की उसकी लाश को खैमा तक नहीं लाया जा सका ! ऐ नाना, भाई हसन का बेटा क़ासिम, इस तरह से घोड़ों की टापों से रोंदा गया की उसके जिस्म का एक एक टुकड़ा मक़तल में फैल गया! नाना, आप की उम्मत ने मुझे भी ना छोड़ा! मुझे प्यासा रख़ा नाना ! अंसार, अज़ीज़ और बेटों के शहादत के बाद मै तेरे दीन को बचाने की ख़ातिर कर्बला के उस तपते हुए रेगिस्तान में गया, जहाँ मैंने अकबर, असग़र, अब्बास वा कासिम को भेजा था ! नाना, तेरी उम्मत, दादा अबू तालिब को काफिर कहती थी, लेकिन कर्बला के मैदान में अल्लाह का दीन बचाने के लिए कटी औलादे अबुतालिब ही ना ! मैंने अल्लाह का, आप का और बाबा अली-मुर्तज़ा का नाम लेकर उन्हें बहुत समझाने की कोशिश की, लेकिन वोह न माने! जब निदा के बाद मैंने अपनी तलवार म्यान में रखी तो पहले लोगों में मुझ पर पत्थर मारे, फिर नैज़े, फिर तलवारें, नाना मुझे जब यह ज़ालिम मार रहे थे तो मैंने आपको, माँ फातिमा, बाबा अली, और भाई हसन को बहुत याद कर रहा था! नाना, सच तो यह है की अम्मा बहुत याद आयीं! नाना मुझे इतने तीर लगे थे की जब मै घोड़े से ज़मीन पर ग़िर रहा था, मै भी भाई अब्बास की तरह हाथ के बल ना आ सका. बल्कि तीर इतने थे नाना की मै ज़मीन पर ही नहीं आ सका ! जालिमों ने मेरी उंगली काट कर अंगूठी उतार ली नाना ! कोई आप का अमामा ले गया कोई पैराहन ले गया ! नाना, जब शिमर ज़िल जौशन मेरा सर काट रहा था, मेरी अम्मा ने बचाने की बहुत कोशिश की थी! प्यास की शिद्दत, कुंद छुरी, उलटी गर्दन, 1900 ज़ख़्म नाना! नाना, मैने अपना सर नोके नैज़ा पर चढ़ा कर तेरे दीन की फ़तह का एलान किया! नाना ख़ुदा हाफ़िज़, अब मेरी जैनब व उम्मे कुलसूम की चादर का ख्याल तेरे हवाले, मेरे बीमार सैयदे सज्जाद को जलना से बचाना, नाना! इन्ना लिल'लाहे व इन्ना इलैही राजे'उन ! |
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4 सफ़र - शहादत मासूम-ए-क़ुम |
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28 सफ़र - शहादत इमाम हसन (अ:स) (कुछ रिवायत के मुताबिक 7 सफ़र) | |
28 सफ़र - शहादत पवित्र पैगंबर हज़रत मुहम्मद (स:अ:व:व) 11AH | 9 सफ़र - शहादत इमाम रज़ा (अ:स) 203 AH (कुछ रिवायत के मुताबिक) किताबें | ज़िआरत | साईट |
सफ़र के महीने के आखिरी बुध की दुआनया |
2 सफ़र - जंगे सिफ्फिन 37 AH - शहादत अम्मार-ए-यासिर 27AH |
10 सफ़र - जंगे नहरवान - हज़रत अली (अ:स) ने जीती |
12 सफ़र - शहादत सलमाने फ़ारसी |
13 सफ़र - शहादत जनाबे सकीना (अ:स) / इमाम हुसैन (अ:स) की पुत्री |