ईमाम हुसैन (अ:स) की ज़्यारत - 1 और 15 रजब, और 15 शाबान  

 रजब की दुआएं  | 15 रजब की मख्सूस ज़्यारत  (अल मज़र)  | शाबान की दुआ | 15 शाबान की मख्सूस ज़्यारत (बलादुल आमीन)

यह ज़्यारत 1 रजब, 15 रजब और 15 शाबान के लिये मख्सूस है! ईमाम जाफ़र अल-सादीक़ से मंसूब है की जो शख्स ईस ज़्यारत क़ो 1 रजब क़ो पढ़ेगा तो अल्लाह  उसके सारे गुनाहों क़ो माफ़ का देगा! इबने अबी नसर से मंसूब है की जब उनहोंने ईमाम अली रज़ा (अ:स) से पूछा की ईमाम हुसैन की ज़्यारत पढ़ने/करने का सबसे अच्छा वक़्त कौन है तो उन्होंने जवाब दिया : 15 रजब और 15 शाबान 

शेख़ मुफ़ीद (अ:र) और शेख़ इब्ने तावूस (र:अ) ने बताया है की यह ज़्यारत 1 रजब और 15 शाबान से मंसूब है, लेकिन शहीद (र:अ) ने इसे 1 रजब की रात, 15 रजब की रात और 15 शाबान की रात की लिये मख्सूस बताया है! इनके अनुसार ईस ज़्यारत क़ो पढ़ने के 6 मख्सूस मौक़े हैं!

ईस ज़्यारत क़ो पढ़ने का तरीक़ा यह है की : जब आप ईस ज़्यारत क़ो ईन मख्सूस मौकों पर पढ़ना चाहते हैं तो पहले ग़ुस्ल करें, पाक साफ़ लिबास पहन कर रौज़े पर क़िबला की तरफ़ मुंह करके खड़े हो कर पवित्र पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद (स:अ:अव:व), हज़रत अली (अ:स), हज़रत फ़ातिमा (स:अ), ईमाम हसन (अ:स) ईमाम हुसैन (अ:स) और दुसरे इमामों (अ:स) पर सलाम भेजें, इसके बाद नीचे लिखी हुई दुआ क़ो पढ़ें (जो रौज़े में जाने की अनुमति के लिये है), फिर रौज़े में जाएँ और ज़री के नज़दीक खड़े हो कर 100 मर्तबा "अल्लाहो अकबर" कहें, फिर पढ़ें!

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अनुवाद पर काम जारी है

अब ज़री क़ो चूमें और पहले अपना दाहिना गाल ज़री पर रखें फिर बायाँ गाल रखें, फिर ज़री के चारों तरफ़ घूमें और चूमें! शेख़ मुफ़ीद (अ:र) फ़रमाते हैं : यहाँ के बाद अली बिन हिस्सें (अ:स) के रौज़े पर जाएँ और उनके रौज़े पर खड़े होकर पढ़ें:

पवित्र क़ब्र से अपने बदन का मसः करें और कहें:

इसके बाद अपना ध्यान कर्बला के दुसरे शहीदों पर लगायें और कहें :

इसके बाद वापस आयें, और ईमाम (अ:स) के क़ब्र के सिरहाने खड़े होकर 2 रक्'अत नमाज़े ज़्यारत (नमाज़े फ़ज्र की तरह) पढ़ें और अपने लिये और दोस्सरे मोमिनीन व मोमिनात के लिये दुआ करें!

किताब अल-बलादुल आमीन में शेख़ अल-काफ़'अमी, ईमाम जाफ़र अल-सादीक़ (अ:स) से मंसूब करके फ़रमाते हैं की ईमाम हुसैन (अ:स) के रौज़े पर रूक कर यह दुआ पढ़े!:

ألْحَمْدُ للهِ الْعَلِيِّ الْعَظيمِ

अलहम्दो लिल्लाहे अल-अली'य्यी अल अज़ीम

 

والسَّلامُ عَلَيْكَ أيُّها الْعَبْدُ الصَّالِحُ الزَّكيُّ

व़स'सलामु अलय्का अय्युहा अल-अब्दु अल'सालेहो अल'ज़की'य्यी

 

اُودِعُكَ شَهادَةً مِنِّي لَكَ تُقَرِّبُني إلَيْكَ فِي يَوْمِ شَفاعَتِكَ،

उदी'उका शहा'दतन मिन्नी लका तुक़र'रिबुनी इलैका फ़ि यौमी शफ़ा' अतिका 

 

أشْهَدُ أنَّكَ قُتِلْتَ وَلَمْ تَمُتْ

अश'हदू अन्नका क़ुतिला व लम तमुत

 

بَلْ بِرَجاءِ حَياتِكَ حَيِيَتْ قُلُوبُ شيعَتِكَ،

बल बरजा'ई हयातिका हयियत क़ुलुबू शी'अतिका

 

وَبِضِياءِ نُورِكَ اهْتَدَى الطَّالِبُونَ إلَيْكَ،

व बिज़'या-ए नुरिका अह्तदा अल'तालिबुना इलैका

 

وَأشْهَدُ أنَّكَ نُورُ اللهِ الَّذي لَمْ يُطْفَأْ وَلا يُطْفَأُ أبَداً،

व अश'हदों अन्नका नुरू अल्लाहि अल'लज़ी लम यो'तुफ़ा व ल यो'तूफ़ा अबादन

 

وَأنَّكَ وَجْهُ اللهِ الَّذي لَمْ يَهْلِكْ وَلا يُهْلَكُ أبَداً،

व अन्नका वज्हू अल्लाहि अल'लज़ी लम यहलिक वला युहलाकु अबादन

 

وَأشْهَدُ أنَّ هذِهِ التُّرْبَةَ تُرْبَتُكَ،

व अश'हदू अन्ना हज़िही अत'तर्बता तुर्बतोका

 

وَهذا الْحَرَمَ حَرَمُكَ،

व हाज़ा अल-हरामा हर्मुका

 

وَهذا الْمَصْرَعَ مَصْرَعُ بَدَنِكَ

व हाज़ा अल मसरा'अ मसरा'उ बदानिका

 

لا ذَليلَ واللهِ مُعِزُّكَ

ला ज़लीला वल'लाहू मु'इज्ज़ुका

 

وَلا مَغْلُوبَ واللهِ ناصِرُكَ،

व ला मग़'लूबा वल'लाहे नासेरोका

 

هذِهِ شَهادَةٌ لي عِنْدَكَ إلى يَوْمَ قَبْضِ روُحي بِحَضْرَتِكَ،

हज़ेही शहा'दतून ली'इनदका इला युमी क़ब्री रूही बी'हसरतिका

 

والسَّلامُ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَةُ اللهِ وَبَرَكاتُهُ.

व अस'सलामु अलैका व रहमतुल'लाही व बराकातोहू

 

ईमाम हुसैन (अ:स) एक दूसरी मख्सूस ज़्यारत - 15 रजब के लिय

            

     

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